डर पर विश्वास की जीत! दो दशक बाद शुरू हुआ डब्बाकोन्टा का साप्ताहिक बाज़ार

सुकमा। दो दशक की लंबी प्रतीक्षा के बाद आखिरकार डब्बाकोन्टा में फिर से रौनक लौट आई है। सलवा जूडूम आंदोलन के शुरुआती दौर में 2005 में बंद हुआ साप्ताहिक बाजार 20 साल बाद आज से दोबारा शुरू हो गया।बाजार की शुरुआत व्यापारियों और पुजारियों ने विशेष पूजा-अर्चना के साथ की। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि इतने लंबे समय बाद बाज़ार की वापसी उनके लिए उम्मीद, रोजगार और सहज जीवन की तरफ बड़ा कदम है।

गौरतलब है कि कुछ साल पहले भी बाजार खोलने की कोशिश की गई थी, लेकिन उस दौरान नक्सलियों ने व्यापारियों के साथ मारपीट कर बाजार लगाने से रोक दिया था। स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों की मौजूदगी में इस बार आखिरकार बाजार शांति के साथ शुरू हो गया।ग्रामीणों ने कहा कि बाज़ार का फिर से खुलना उनके लिए सामान्य जीवन की ओर लौटने का संकेत है और आने वाले समय में व्यापार भी तेजी पकड़ने की उम्मीद है।
क्षेत्र में नक्सली खतरे की वजह से 20 साल तक बंद रहा बाजार
डब्बाकोन्टा पूरा इलाका लंबे समय तक अति संवेदनशील नक्सल प्रभावित श्रेणी में रहा। सुरक्षा स्थिति इतनी खराब थी कि यहां बाजार लगना तो दूर, व्यापारी भी अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरे गांवों में जाकर व्यापार करने को मजबूर थे।
बाजार बंद होने का सीधा असर आम ग्रामीणों पर पड़ा। रोजमर्रा की जरूरत की चीजें खरीदने के लिए उन्हें कई किलोमीटर दूर के बाजारों पर निर्भर रहना पड़ता था। दवाइयाँ, किराना, सब्जियाँ—सब कुछ गांव से बाहर जाकर लाना पड़ता था, जिससे समय और पैसों दोनों की भारी परेशानी होती थी। अब 20 साल बाद बाजार फिर शुरू हुआ है, तो ग्रामीण इसे सामान्य जीवन की ओर बड़ी वापसी मान रहे हैं।




