
रायपुर – बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के बाद अब छत्तीसगढ़ में भी मतदाता सूची के विशेष संशोधन की मांग जोर पकड़ रही है। प्रदेश के गृह मंत्री विजय शर्मा ने SIR को लागू करने की आवश्यकता बताते हुए कहा कि यह चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए जरूरी है। वहीं विपक्षी कांग्रेस ने आशंका जताई है कि 2028 के विधानसभा चुनावों में भाजपा बिहार जैसा ‘षड्यंत्र’ रच सकती है, राजनीतिक हलकों में यह मुद्दा गरमा रहा है, जो लोकतंत्र की मजबूती पर बहस छेड़ रहा है।
पहले जाने बिहार SIR पर बवाल क्यों?
बिहार में चुनाव आयोग ने 2025 विधानसभा चुनावों से पहले SIR अभियान चलाया, जिसमें घर-घर सत्यापन के बाद ड्राफ्ट मतदाता सूची 1 अगस्त 2025 को जारी की गई। आंकड़ों के अनुसार, 7.89 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 65 लाख नाम हटा दिए गए, जिनमें 22 लाख मृत, 36 लाख स्थायी रूप से स्थानांतरित, 9.7 लाख अनुपस्थित और 7 लाख डुप्लिकेट एंट्री वाले शामिल हैं। विपक्ष ने इसे ‘वोट चोरी’ का हथकंडा बताते हुए पुरजोर विरोध किया, लेकिन आयोग का कहना है कि यह फर्जी वोटिंग रोकने का प्रयास है। बिहार में केवल 30,000 नाम जोड़ने के आवेदन आए, जबकि 2 लाख से अधिक नाम हटाने के।
छत्तीसगढ़ में SIR की मांग क्यों?
गृह मंत्री विजय शर्मा ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि बिहार की तरह छत्तीसगढ़ में भी SIR की आवश्यकता है। छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में अवैध बांग्लादेशी,रोहिंग्या के साथ पाकिस्तानी घुसपैठी भी अवैध तरीके रह रहे है। कवर्धा के साथ अन्य जगहों पर एक नाम के दो वोटर्स है। बीजेपी ये मसला लागातर उठाते रही है। बीजेपी का कहना है कि फर्जी वोटिंग के पुराने आरोप लोकतंत्र के लिए खतरा हैं। हम पारदर्शिता के लिए चुनाव आयोग से अपील करते हैं।” शर्मा ने 2023 विधानसभा चुनावों में लगे फर्जी वोटिंग के आरोपों का हवाला देते हुए कहा कि SIR से डुप्लिकेट वोटरों और अमान्य नामों को हटाया जा सकता है।
कांग्रेस का आरोप
भाजपा ने SIR का समर्थन किया है तो वहीं कांग्रेस ने 2028 चुनाव में षड्यंत्र की आशंका जताई। पीसीसी चीफ दीपक बैज ने SIR की मांग का समर्थन तो किया, लेकिन चेतावनी दी कि बिहार जैसी स्थिति छत्तीसगढ़ में न हो जाए। पार्टी ने कहा कि SIR लागू हो, लेकिन पारदर्शी तरीके से, वरना यह ‘लोकतंत्र की हत्या’ होगा।
SIR के संभावित फायदे और चुनौतियां
फायदे: फर्जी नाम हटने से वोटर लिस्ट सटीक बनेगी, आधार लिंकिंग से सत्यापन आसान होगा। नक्सल क्षेत्रों में मतदाता भागीदारी बढ़ेगी।
चुनौतियां: ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में दस्तावेजों की कमी से असली वोटर प्रभावित हो सकते हैं। विपक्ष का डर है कि यह सत्तारूढ़ दल के हित में इस्तेमाल हो सकता है।
चुनाव आयोग का रुख
छत्तीसगढ़ में 2025 के तहत संक्षिप्त पुनरीक्षण चल रहा है, लेकिन SIR पर कोई घोषणा नहीं की है। हालांकि केंद्रीय चुनाव आयोग छत्तीसगढ़ के साथ कई राज्यों में SIR कराने की योजना पर काम कर रहा है।




