गांधी जयंती स्पेशल: छत्तीसगढ़ से महात्मा गांधी का गहरा रिश्ता

रायपुर। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पूरे देश में श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाई जा रही है। बापू का छत्तीसगढ़ से भी विशेष जुड़ाव रहा है। आजादी की लड़ाई के दौरान वे दो बार इस प्रदेश की धरती पर आए। एक बार किसानों के आंदोलन को समर्थन देने और दूसरी बार सामाजिक बराबरी का संदेश देने। उनकी यह यात्राएँ छत्तीसगढ़ के इतिहास में आज भी सुनहरे अध्याय के रूप में दर्ज हैं।
पहली यात्रा: कंडेल सत्याग्रह से जुड़ी यादें
इतिहासकार बताते हैं कि महात्मा गांधी पहली बार 20 दिसंबर 1920 को छत्तीसगढ़ आए थे। उस समय उनके साथ ‘छत्तीसगढ़ के गांधी’ कहे जाने वाले पं. सुंदरलाल शर्मा भी मौजूद थे। बापू जब रायपुर रेलवे स्टेशन पर पहुंचे तो उनका जोरदार स्वागत पं. रविशंकर शुक्ल, ठाकुर प्यारेलाल सिंह, सखाराम दुबे और पं. वामनराव लाखे जैसे नेताओं ने किया।
रायपुर में वर्तमान गांधी चौक पर गांधीजी ने एक विशाल जनसभा को संबोधित किया। इस सभा के बाद ही इस स्थान का नाम गांधी चौक पड़ा। उन्होंने ब्राह्मणपारा स्थित आनंद समाज वाचनालय में महिलाओं की सभा को भी संबोधित किया। इस दौरान महिलाओं ने उनकी अपील पर तिलक स्वराज फंड के लिए करीब 2000 रुपए के गहने दान किए, जो उस दौर में बहुत बड़ी राशि थी।
इसके बाद 21 दिसंबर को गांधीजी धमतरी पहुंचे और वहां से कंडेल व कुरुद गांव गए। कंडेल में किसानों के आंदोलन (कंडेल सत्याग्रह) में शामिल होकर उन्होंने किसानों का मनोबल बढ़ाया। इसके बाद वे रायपुर लौटे और नागपुर के लिए रवाना हुए, जहां 26 दिसंबर 1920 को कांग्रेस अधिवेशन हुआ।
दूसरी यात्रा: बलौदाबाजार में दलित सम्मान
गांधीजी दूसरी बार 1933 में बलौदाबाजार पहुंचे। उनकी यह यात्रा सामाजिक दृष्टि से ऐतिहासिक साबित हुई। बलौदाबाजार मंडी प्रांगण में सभा के दौरान उन्होंने एक दलित से पानी निकलवाया और उसी के हाथों से पानी पीकर समाज को समानता का बड़ा संदेश दिया।
इसके बाद उन्होंने बलौदाबाजार के प्रसिद्ध जगन्नाथ (गोपाल) मंदिर का दौरा किया। उस समय मंदिर में दलितों का प्रवेश वर्जित था, लेकिन गांधीजी कुछ दलितों को अपने साथ लेकर मंदिर में गए। उन्होंने भगवान को रेशमी वस्त्र पहने देखा तो कहा कि भगवान को खादी का वस्त्र पहनना चाहिए। इसके लिए उन्होंने वहीं खादी का वस्त्र मंगवाकर भगवान को पहनाया।
इस यात्रा में उनके साथ स्वतंत्रता सेनानी रघुनाथ प्रसाद केसरवानी, मनोहर दास वैष्णव, पं. लक्ष्मी प्रसाद तिवारी और रामकुमार पांडेय भी मौजूद थे।
गांधी और छत्तीसगढ़ की धरोहर
महात्मा गांधी की ये दोनों यात्राएँ छत्तीसगढ़ के सामाजिक और राजनीतिक इतिहास की धरोहर हैं। कंडेल सत्याग्रह ने किसानों को आजादी की लड़ाई से जोड़ा, वहीं बलौदाबाजार की यात्रा ने छुआछूत और भेदभाव के खिलाफ समाज को जागरूक किया। आज भी इन घटनाओं को याद कर प्रदेश के लोग गर्व महसूस करते हैं।
गांधी जयंती के अवसर पर यह स्मरण करना जरूरी है कि बापू ने सिर्फ आजादी की लड़ाई ही नहीं लड़ी, बल्कि समाज को समानता, न्याय और आत्मनिर्भरता का संदेश भी दिया। छत्तीसगढ़ में उनकी मौजूदगी ने इस विचार को और मजबूत किया।





