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देवी आराधना के बीच बेटियों पर हैवानियत, बालोद मामले ने फिर खोले समाज के घाव

रायपुर – नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है, जब पूरा देश मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना में लीन है और कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर पूजता है। लेकिन इस पवित्रता के बीच छत्तीसगढ़ के बालोद जिले से एक ऐसी घटना सामने आई है, जो समाज की कथित सभ्यता पर करारा तमाचा है। 9 साल की मासूम बच्ची को उसके ही रिश्ते के बड़े पापा ने दुर्गा पूजा दिखाने के बहाने जंगल ले जाकर दुष्कर्म किया और विरोध पर हत्या की कोशिश तक की। यह मामला न केवल एक परिवार का दर्द है, बल्कि नवरात्रि जैसे त्योहार पर बेटियों की सुरक्षा पर सवाल खड़े करता है।

नवरात्रि में जहां एक ओर मां दुर्गा की शक्ति की पूजा होती है, वहीं दूसरी ओर ऐसी घटनाएं समाज की दोहरी नैतिकता को उजागर करती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कन्या पूजन का संदेश तो सम्मान है, लेकिन हकीकत में बेटियां असुरक्षित बनी हुई हैं। बालोद के गुरूर थाना क्षेत्र की यह घटना उसी विडंबना का प्रतीक है। आरोपी ने बच्ची को दुर्गा प्रतिमा दिखाने का लालच देकर जंगल ले जाया, जहां उसने अपनी क्रूरता दिखाई। बच्ची ने विरोध किया तो आरोपी ने गला दबाकर उसे बेहोश कर दिया और मृत समझकर छोड़ दिया। चमत्कारिक रूप से बच्ची घर लौटी और परिजनों को सारी घटना बता दी। पुलिस ने आरोपी को हिरासत में ले लिया है।

यह पहली बार नहीं है जब नवरात्रि के दौरान ऐसी शर्मनाक घटना घटी हो। छत्तीसगढ़ में ही चैत्र नवरात्रि 2025 के नवमी पर दुर्ग जिले में 6 साल की बच्ची कन्या भोजन के बहाने रिश्तेदार के घर गई, जहां उसके साथ दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने रेप की पुष्टि की, और पुलिस ने रिश्तेदार समेत तीन लोगों को हिरासत में लिया। उत्तर प्रदेश के देवरिया में भी दुर्गा पूजा देखने गई 5 साल की बच्ची के साथ 11 साल के नाबालिग ने दुष्कर्म किया। इन घटनाओं से साफ है कि त्योहारों का बहाना बनाकर अपराधी अपनी हवस मिटाते हैं, और बेटियां सबसे ज्यादा असुरक्षित रहती हैं।

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के मामले बढ़ रहे हैं। 6 साल से कम उम्र की लड़कियों पर 41 से ज्यादा मामले दर्ज हैं, जो राज्य को शीर्ष पांच राज्यों में शामिल करता है।

नवरात्रि जैसे पर्व पर कन्या पूजन की परंपरा है, जहां नन्हीं लड़कियों को दुर्गा का रूप मानकर भोजन कराया जाता है। लेकिन हकीकत यह है कि घर-परिवार के ही लोग खतरा बन जाते हैं। बालोद मामले में आरोपी बच्ची का रिश्तेदार था, जो विश्वास का सबसे बड़ा दुश्मन साबित हुआ। इस घटना ने एक बार फिर जागरूकता की जरूरत पर जोर दिया है। महिला एवं बाल विकास विभाग, छत्तीसगढ़ ने कोविड के बाद बच्चों की सुरक्षा के लिए हेल्पलाइन शुरू की है, लेकिन जमीनी स्तर पर सख्ती की कमी है। बालोद की घटना के आरोपी को सख्त सजा सुनिश्चित करने की मांग उठ रही है। नवरात्रि देवी शक्ति का उत्सव है, लेकिन जब बेटियां ही असुरक्षित हों, तो यह पूजा अधूरी लगती है। समाज को आत्ममंथन करने की जरूरत है—क्या हम वाकई देवी की तरह बेटियों का सम्मान करते हैं, या सिर्फ रस्म निभाते हैं? बालोद की यह मासूम आवाज बन चुकी है, जो पूरे समाज से न्याय मांग रही है।

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CG Bulletin Desk1

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