बस्तर का मुरिया दरबार: आदिवासी लोकतंत्र की प्राचीन सभा, जहां आज अमित शाह करेंगे शिरकत

जगदलपुर – छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में आज इतिहास रचा जाएगा, जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 600 वर्ष पुरानी आदिवासी परंपरा ‘मुरिया दरबार’ में पहली बार भाग लेंगे। यह आयोजन विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा महोत्सव का केंद्रीय हिस्सा है, जो 75 दिनों तक चलने वाला दुनिया का सबसे लंबा दशहरा समारोह माना जाता है। अमित शाह का यह दौरा न केवल सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि नक्सलवाद मुक्ति के ‘मिशन 2026’ की प्रगति की समीक्षा के लिए भी रणनीतिक है।
मुरिया दरबार क्या है?
मुरिया दरबार बस्तर के आदिवासी समुदायों का एक प्राचीन ‘लोकतांत्रिक संसद’ है, जहां मुरिया (युवा आदिवासी) और अन्य जनजातीय प्रतिनिधि अपनी समस्याएं, सुझाव और विवादों का समाधान करते हैं। शाब्दिक अर्थ ‘मुरिया का दरबार’ यह एक ऐसा मंच है, जहां राजा या प्रशासन के प्रतिनिधि के समक्ष गणमान्य व्यक्ति खुलकर अपनी बात रखते हैं। यह परंपरा 600 वर्ष से अधिक पुरानी है, जो बस्तर के पूर्व राजवंश से जुड़ी हुई है।
मुरिया दरबार बस्तर के इतिहास में शासकों और प्रजा के बीच संवाद के एक मंच के रूप में एक अद्वितीय स्थान रखता है। 8 मार्च 1876 को औपचारिक रूप से स्थापित, इसके पहले सत्र की अध्यक्षता सिरोंचा के उपायुक्त मैकजॉर्ज ने की थी, जिन्होंने राजा और उनके अधिकारियों को संबोधित किया था। इस परंपरा की उत्पत्ति की व्याख्या करते हुए, बस्तर की संस्कृति और इतिहास के विद्वान रुद्रनारायण पाणिग्रही ने बताया कि “मुरिया” शब्द हल्बी लोकभाषा से लिया गया है, जहाँ “मूल” का अर्थ “जड़” या “मूल” होता है। समय के साथ, इसमें “इया” प्रत्यय जुड़ गया, जिससे यह “मुरिया” हो गया, जो बस्तर के मूल निवासियों को दर्शाता है। प्रारंभ में, मुलिया शब्द का प्रयोग “मूल” के लिए किया जाता था, लेकिन भाषाई परिवर्तनों और लगातार प्रयोग ने धीरे-धीरे इसे “मुरिया” में बदल दिया, जो आज इस क्षेत्र के आदिवासी समुदायों से जुड़ा हुआ है।परंपरागत रूप से, गाँव के प्रतिनिधि—मांझी, मुखिया, कोटवार, चालकी, नायक और पाइक—अपने क्षेत्रों की शिकायतें राजा के समक्ष प्रस्तुत करते थे। यह मंच राज्य कर्मचारियों को भी शिकायतें दर्ज कराने की अनुमति देता था। अक्सर समस्याओं का तुरंत समाधान ढूँढ़ा जाता था, जिससे मुरिया दरबार एक एकतंत्रीय न्याय व्यवस्था का एक दुर्लभ उदाहरण बन गया, जिसकी संरचना निरंकुश होने के साथ-साथ लोगों द्वारा व्यापक रूप से स्वीकृत भी थी। आज भी, मुरिया दरबार एक ऐसे स्थान के रूप में अपनी भूमिका बनाए हुए है जहाँ ग्रामीण दशहरा समारोह के दौरान अपनी समस्याएँ व्यक्त कर सकते हैं और समाधान की माँग कर सकते हैं
- महत्व: यह आदिवासी समाज में महिलाओं की समान भागीदारी को दर्शाता है। 2024 के गणतंत्र दिवस पर छत्तीसगढ़ की झांकी में इसे ‘भारत माता लोकतंत्र की जननी’ थीम के तहत दिखाया गया था। यह नक्सल प्रभावित क्षेत्र में शांति और विकास का प्रतीक भी है।
आज यह सभा जगदलपुर के सिरहासर भवन में दोपहर 12:30 बजे आयोजित होगी, जहां अमित शाह मां दंतेश्वरी मंदिर में पूजा के बाद पहुंचेंगे। यहां वे मंजी, गयता और परमा जैसे आदिवासी पुजारियों के साथ भोजन करेंगे और जनजातीय प्रतिनिधियों से सीधा संवाद करेंगे।

अमित शाह का दौरा: सांस्कृतिक और रणनीतिक आयाम
अमित शाह का बस्तर दौरा बस्तर दशहरा समिति, स्थानीय सांसद और मंजी नेताओं के निमंत्रण पर हो रहा है। यह पहली बार है जब कोई केंद्रीय गृह मंत्री इस दरबार में शामिल हो रहे हैं। इसके पहले प्रदेश के मुखिया ही इस दरबार में शामिल होते रहे है।
| सुबह 12:15 | मां दंतेश्वरी मंदिर में पूजा | जगदलपुर |
| दोपहर 12:30 | मुरिया दरबार में भागीदारी, आदिवासी नेताओं से चर्चा | सिरहासर भवन, जगदलपुर |
| दोपहर 1.25 | लाल बाग | प्रदर्शनी अवलोकन, मंचीय कार्यक्रम |
बस्तर दशहरा से महिलाओं को सौगात
इसके अलावा, शाह बस्तर दशहरा मंच से ‘महतारी वंदन योजना’ की 20वीं किश्त जारी करेंगे, जो महिलाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करती है।
स्थानीय उत्साह और सुरक्षा व्यवस्था
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, विधानसभा स्पीकर रमन सिंह और उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा भी उपस्थित रहेंगे। प्रशासन ने व्यापक सुरक्षा इंतजाम किए हैं, जिसमें बीएसएफ और स्थानीय पुलिस शामिल है। एक्स (पूर्व ट्विटर) पर भी #AmitShahInBastar ट्रेंड कर रहा है, जहां नेता और नागरिक उनका स्वागत कर रहे हैं। बस्तर दशहरा मां दंतेश्वरी की पूजा पर केंद्रित है, जो मुख्यधारा के दशहरा से अलग है। यह आयोजन आदिवासी संस्कृति को जीवंत रखते हुए विकास और शांति का संदेश देता है। अमित शाह के दौरे से बस्तर के आदिवासियों में नई उम्मीद जगी है।



